सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली में जय श्रीराम' और 'जय हनुमान' के नारों के साथ जंतु प्रेमियों ने प्रदर्शन किया.
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनके हमलों को गंभीर मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त निर्देश जारी किए हैं. कोर्ट ने राजधानी दिल्ली और एनसीआर की सरकारों को आदेश दिया है कि वे आगामी आठ सप्ताह के भीतर यहां के 5 हजार से ज्यादा कुत्तों के लिए शेल्टर होम बनाएं और उन्हें वहां शिफ्ट करें. कोर्ट ने कहा कि यह कदम बुजुर्गों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है और इससे रेबीज के खतरे को भी कम किया जा सकेगा. अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जंतु प्रेमी खुलकर विरोध कर रहे हैं. सोमवार रात को सैकड़ों जंतु प्रेमी इंडिया गेट पर एकत्र हुए और जोरदार प्रदर्शन किया. वहीं मंगलवार दोपहर, कनॉट प्लेस के प्राचीन हनुमान मंदिर के सामने भी प्रदर्शनकारी भारी तादाद में पहुंचे.
प्रदर्शन से पहले ही पुलिस मौके पर भारी संख्या में तैनात थी. एसएसबी और दिल्ली पुलिस के सैकड़ों जवानों ने इलाके को घेर रखा था. पुलिस का तर्क था कि प्रदर्शन के लिए अनुमति नहीं ली गई थी, इसलिए पुलिस लगातार जंतु प्रेमियों को हटाने की कोशिश करती दिखी. स्थिति बिगड़ने पर पुलिस ने दर्जनों प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया और बसों से अलग-अलग स्थानों पर भेज दिया.
प्रदर्शन के दौरान कई बार पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कहासुनी और हाथापाई भी हुई. कई महिलाओं को जबरन बस में बैठाते समय झड़पें देखने को मिलीं. एक महिला, जिसे हिरासत में लिया गया, बस के अंदर से रोते हुए कहती हैं, "हमें मंदिर के अंदर जाकर अपने डॉग्स के लिए प्रार्थना भी नहीं करने दी जा रही है. ये लोकतंत्र नहीं तानाशाही है. हमारी आवाज को दबाया जा रहा है. सरकार अपनी नाकामी का गुस्सा बेजुबान जानवरों पर निकाल रही है."
बस के अंदर से ही महिला ने शीशे से बाहर झांकते हुए नारे लगाए, "जय श्रीराम, जय हनुमान, जय बजरंग बली!"
प्रदर्शनकारियों ने धार्मिक प्रतीकों और तस्वीरों के माध्यम से अपने संदेश देने की कोशिश की. एक पोस्टर में भगवान शिव की गोद में एक कुत्ता दिखाया गया, जिस पर लिखा था, "हे शिव भोले, मुझसे यह संताप दूर करो." ऐसे कई पोस्टरों में कुत्तों को देवी-देवताओं के साथ दिखाकर जंतु प्रेमियों ने सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव को सामने रखा.
प्रदर्शन में शामिल अंबिका शुक्ला कहती हैं, "कोर्ट का जो आदेश है कि सभी कुत्तों को शेल्टर होम में रखा जाए, उसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए. कुत्ते अपराधी नहीं हैं. उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है. ये भी इसी धरती पर रहते हैं, जिन्हें उसी भगवान ने बनाया है जिसने हमें. कुत्ते हमारी संस्कृति, धर्म और दिल से जुड़े हुए हैं. अगर आपको उनसे दिक्कत है, तो हम आपको समाधान बताएंगे. हमसे बात कीजिए, हमारे पास है समाधान."
उन्होंने मीडिया को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि "टीवी चैनलों ने कुत्तों को 'खूंखार' बताकर डर और दहशत का माहौल बनाया है, जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है. देखिए, यहां इंसान, बंदर और कुत्ते साथ घूम रहे हैं, किसी को कोई परेशानी नहीं है."
साकेत से प्रदर्शन में शामिल होने आई नंदनी कहती हैं, "हम नहीं चाहते कि कुत्तों को यूं ही उठा लिया जाए. सरकार बताए कि उन्हें कहां रखा जाएगा? क्या उनके पास संसाधन हैं? उनके खाने, देखभाल के लिए क्या इंतज़ाम है? इसके बजाय सभी कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी की जाए, यही स्थायी समाधान है."
धीरज नामक एक जंतु प्रेमी दो कुत्तों को पिंजरे में लेकर प्रदर्शन में पहुंचे. उन्होंने कहा, "अगर सरकार और सिस्टम ने समय रहते काम किया होता तो आज स्थिति इतनी गंभीर न होती. सुप्रीम कोर्ट को भी अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए. कुत्ते बोल नहीं सकते, इसलिए उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है."
कुछ प्रदर्शनकारी अपने पालतू कुत्तों को साथ लेकर इस प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे थे, हालांकि पुलिस की उन पर नजर थी, जिसके चलते वह या तो हिरासत में ले लिए गए या फिर वहां से जल्दी ही चले गए. कई बार प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प की स्थिति बन गई. महिला पुलिसकर्मी कुछ महिला प्रदर्शनकारियों के साथ अभद्र व्यवहार करती दिखीं. इस दौरान पुलिस ने बस के शीशे बंद कर दिए थे और प्रदर्शनकारियों को अंदर बैठा लिया गया. उनके साथ हाथापाई भी की गई.
बता दें कि बीते 11 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि अगर कोई एनजीओ या संस्था कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया में बाधा डालती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में बीते साल (2024) में रेबीज़ से 54 लोगों की मौत हुई, जो 2023 के मुकाबले अधिक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में हर साल करीब 18,000 से 20,000 मौतें रेबीज़ से होती हैं. हालांकि, यह भी माना जाता है कि असल संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है क्योंकि कई मामले दर्ज ही नहीं होते.
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