द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब अपराध किसी समाचार लेख के प्रकाशन से जुड़ा हो तो पुलिस हिरासत में पूछताछ जरूरी नहीं होती. 

द वायर के लोगो के साथ सिद्धार्थ वरदराजन।

सुप्रीम कोर्ट ने असम में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 के तहत दर्ज एक एफआईआर में द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की है. 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला मोरीगांव पुलिस ने 11 जुलाई को दर्ज किया था. वायर की खबर का शीर्षक था, “IAF Lost Fighter Jets to Pak Because of Political Leadership Constraints’: Indian Defence Attache” (भारतीय वायुसेना ने राजनीतिक नेतृत्व की बाध्यताओं के कारण पाकिस्तान को लड़ाकू विमान गंवाए: भारतीय रक्षा अधिकारी) 

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म  और वरदराजन द्वारा दायर याचिका पर अंतरिम आदेश दिया. मालूम हो कि फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म, द वायर का स्वामित्व रखने वाला ट्रस्ट है. 

याचिका में धारा 152 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह प्रावधान औपनिवेशिक दौर के राजद्रोह कानून का नया रूप है. कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और इस याचिका को उस अन्य याचिका के साथ टैग कर दिया जिसमें इसी प्रावधान की वैधता पर सवाल उठाया गया है.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने दलील दी कि यह प्रावधान अस्पष्ट और व्यापक है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर “गहरा असर” पड़ता है, खासकर मीडिया के रिपोर्ट करने और सरकार से सवाल पूछने के अधिकार पर.

हालांकि, पीठ ने पूछा कि क्या किसी प्रावधान को केवल दुरुपयोग की संभावना के आधार पर रद्द किया जा सकता है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सवाल उठाया कि क्या मीडिया को अलग वर्ग के रूप में देखा जाना चाहिए. इस पर जस्टिस बागची ने कहा, “मांग यह नहीं है. मुद्दा यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और सार्वजनिक व्यवस्था की सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे हो.”

जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि जब अपराध किसी समाचार लेख के प्रकाशन से जुड़ा हो तो पुलिस हिरासत में पूछताछ जरूरी नहीं होती. उन्होंने कहा, “असल में यह ऐसे मामले होते हैं जहां आपको कस्टोडियल इंटरोगेशन की जरूरत नहीं होती.”

याचिका में कहा गया कि विवादित खबर इंडोनेशिया की एक यूनिवर्सिटी में आयोजित सेमिनार और उसमें भारतीय रक्षा अधिकारियों द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपनाई गई सैन्य रणनीति पर दिए गए बयानों की तथ्यात्मक रिपोर्ट थी. खबर में भारतीय दूतावास की प्रतिक्रिया भी शामिल थी. साथ ही यह भी बताया गया कि रक्षा अधिकारी के बयान कई अन्य मीडिया संस्थानों ने भी प्रकाशित किए थे.

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह एफआईआर “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” है और प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश है.

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