लोगों का कहना है कि एक बार फिर वे कोरोना जैसे हालातों का सामना कर रहे हैं. जब उनकी जिंदगी थम गई थी.
उत्तरकाशी के धराली और आसपास के गांवों में आई आपदा को हफ्तेभर से ज्यादा बीत चुका है लेकिन हालात सामान्य होने के आसार नहीं दिख रहे. सड़क और पुल टूट जाने से इलाका पूरी तरह कटा हुआ है. ज़रूरी सामान जैसे पेट्रोल, डीज़ल, गैस सिलेंडर, राशन और दवाइयां आदि गांवों तक नहीं पहुंच पा रही. हवाई मार्ग से भी राहत सामग्री कुछ सीमित मात्रा में आ रही है, लेकिन झालासुकी, जसपुर और पुराली जैसे गांव अब भी बेसिक राशन आदि से वंचित हैं.
स्थानीय दुकानों के शेल्फ खाली हैं. कई दुकानदार बताते हैं कि पहले से रखा हुआ सामान बिक चुका है और ग्राहकों को खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. गैस सिलेंडरों की भारी कमी है, और लकड़ी भी भीगी होने से खाना पकाना मुश्किल हो गया है.
पर्यटन और होटल कारोबार पूरी तरह ठप हैं. टूरिस्ट न आने से होटल मालिकों ने ताले जड़ दिए हैं, जिससे होटल कर्मियों से लेकर वूलन और लोकल उत्पाद बेचने वाले छोटे कारोबारी तक बेरोज़गार हो गए हैं. फल और सब्ज़ी उगाने वाले किसान भी परेशान हैं. पत्ता गोभी, आलू, ब्रोकली और अर्ली वैरायटी सेब जैसी फसलें खेत में सड़ रही हैं क्योंकि उन्हें ले जाने वाले ठेकेदार नहीं पहुंच पा रहे.
होटल और ट्रैवल बुकिंग्स का भी भारी नुकसान हुआ है. कई होटल मालिकों के मुताबिक, अब तक 4,500 से 5,600 बुकिंग कैंसिल हो चुकी हैं. व्यापारी मानते हैं कि यह हालात उन्हें कोविड जैसी मार झेलने पर मजबूर कर रहे हैं.
लोगों का कहना है कि कब सड़कें खुलेंगी और सप्लाई लाइन बहाल होगी, इसका अंदाज़ा नहीं है. इस आपदा ने साफ कर दिया है कि पहाड़ों में सड़क और सप्लाई कनेक्टिविटी टूटने का असर सिर्फ़ एक गांव पर नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की रोज़मर्रा की ज़िंदगी और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है.
देखिए आशीष आनंद की ये विशेष रिपोर्ट.