इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा को राहत देते हुए 4 हफ्तों तक उनके खिलाफ किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाई है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पत्रकार अभिसार शर्मा की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने असम पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी. यह एफआईआर उस वीडियो के संबंध में दर्ज हुई थी, जिसमें शर्मा ने राज्य सरकार पर “सांप्रदायिक राजनीति” करने और भूमि आवंटन के फैसलों पर सवाल उठाने का आरोप लगाया था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, एफआईआर में दखल देने से इनकार करते हुए अदालत ने शर्मा को चार हफ्तों तक किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया है, ताकि वे इस दौरान राहत के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट का रुख कर सकें.
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने शर्मा की उस अलग याचिका पर भी नोटिस जारी किया है, जिसमें उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. इस मामले को इसी तरह के एक लंबित मामले के साथ टैग कर दिया गया है. शर्मा पर बीएनएस, 2023 की धारा 152 (राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालना), 196 (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 197 (राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए हानिकारक आरोप) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, शर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि धारा 152 एक “सर्वग्राही” प्रावधान बन गई है जिसका दुरुपयोग हो रहा है. उन्होंने अदालत से हस्तक्षेप की मांग करते हुए यह भी कहा कि इसी तरह के मामले में अदालत ने द वायर के संपादकों सिद्धार्थ वरदराजन और करन थापर को संरक्षण प्रदान किया था.
मालूम हो कि ये एफआईआर अलोक बरुआ की शिकायत पर दर्ज हुई है, जिसमें आरोप लगाया गया कि शर्मा की टिप्पणियां भड़काऊ थीं और उन्होंने राज्य प्रशासन के प्रति अविश्वास को बढ़ावा दिया. इस शिकायतकर्ता के बारे में न्यूज़लॉन्ड्री पहले ही रिपोर्ट कर चुका है.
इससे पहले इस महीने की शुरुआत में, असम पुलिस द्वारा दर्ज इसी तरह के एक मामले में अदालत ने वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और थापर को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी थी.
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